Monday, October 17, 2016

ऐसे मिली थी भगवान शिव को उनकी 'तीसरी आंख'


ऐसे मिली थी भगवान शिव को उनकी 'तीसरी आंख'

भगवान शिव के बारे में तो सभी बहुत कुछ जानते हैं। शिव का विवाह, उनकी पूजा, संगत आदि। लेकिन अभी भी एक ऐसा रहस्य है जिसपर आपने कभी गौर नहीं किया होगा। जी हां- ये है शिव की तीसरी आंख। क्या कभी आपने सोचा है कि भगवान शिव के ही तीन नेत्र क्यों हैं? और इस तीसरे नेत्र का इस्तेमाल वे केवल क्रुद्ध अवस्था में ही करते हैं। तो चलिए आज इस रहस्य से पर्दा उठाते हैं और आपको बताते हैं शिव के तीसरे नेत्र के पीछे की पूरी कहानी।
भगवान शिव ही तीनों लोकों पर नजर रखते हैं।
शिव के तीन नेत्र इस बात के प्रतीक हैं कि शिव ही संसार में व्याप्त तीनों गुण रज, तम और सत्व के जनक हैं। इनकी ही प्रेरणा से रज, तम और सत्व गुण विकसित होते हैं। भगवान शिव की तीसरी आँख शिव जी का कोई अतिरिक्त अंग नहीं है बल्कि ये दिव्य दृष्टि का प्रतीक है। ये दृष्टि आत्मज्ञान के लिए बेहद ज़रूरी बताई जाती है। शिव जी के पास ऐसी दिव्य दृष्टि का होना कोई अचरज की बात नहीं है। महादेव की छवि उनकी तीसरी आँख को और भी ज्यादा प्रभावशाली बनाती है।
शिव की तीसरी आंख के संदर्भ में जिस एक कथा का सर्वाधिक जिक्र होता है वह है कामदेव को शिव द्वारा अपनी तीसरी आँख से भष्म कर देने की कथा। कामदेव यानी प्रणय के देवता ने पापवृत्ति द्वारा भगवान शिव को लुभाने और प्रभावित करने की कोशिश कर रहा था। शिव ने अपनी तीसरी आँख खोली और उससे निकली दिव्य अग्नी से कामदेव जल कर भष्म हो गया। सच्चाई यह है कि यह कथा प्रतिकात्मक है जो यह दर्शाती है कि कामदेव हर मनुष्य के भीतर वास करता है पर यदि मनुष्य का विवेक और प्रज्ञा जागृत हो तो वह अपने भीतर उठ रहे अवांछित काम के उत्तेजना को रोक सकता है और उसे नष्ट कर सकता है।

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